आत्मदीप
Saturday, 29 October 2011
आत्म दीप
काली अंधियारी रात
भयंकर झंझावात
वर्षा घनघोर ,प्रलयंकर
पूछती हूँ प्रश्न
मैं घबराकर
है छुपा कहाँ आशा दिनकर
मन ही कहता
क्यूँ भटके तू इधर उधर
खुद तुझसे ही है आश किरण
तुझ जैसे होंगे कई भयभीत कातर
कर प्रज्वलित पथ
स्वयं ही दीप बन !
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