प्लानेतारियम के
एक कमरे भर के आकाश में
थल भर के सूरज के
चारों तरफ घूमती
प्लेट के बराबर पृथ्वी
और उसके भी
चरों तरफ घूमता
कटोरी के बराबर चन्द्रमा.........
ब्रह्मांड और समय के
अनंत विस्तार में
अपने अस्तित्व को ढूंढती मैं!
कहाँ हूँ मैं ?
और कहाँ हैं मेरी समस्याएं?
जिनके लिए मैंने आकाश
सर पे उठा रखा है?
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